Thursday, 10 April 2014

Press Conference on the situation of Child Rights in Uttar Pradesh [Paradkar Smriti Bhawan, Varanasi] April 08, 2014







8 अप्रैल वाराणसी, आज पराड़कर भवन मैदागिन में बाल अधिकारों पर कार्यरत विभिन्न संस्थाओ की साझा संगठन वायस ऑफ पीपुल और क्वालिटी इन्शटीटीयूश्नल केयर एंड अल्टरनेटिव फॉर चिल्ड्रेन द्वारा संयुक्त प्रेसवार्ता आयोजित की गयी | वायस ऑफ पीपुल (VOP) और क्वालिटी इन्शटीटीयूश्नल केयर एंड अल्टरनेटिव फॉर चिल्ड्रेन (QIC-AC) बच्चों के मुद्दों पर प्रतिबद्ध पैरोकार राज्य स्तरीय संगठन है | जिसके द्वारा उत्त्तर प्रदेश में बच्चों की स्थिति के सन्दर्भ में एक रिपोर्ट साझा किया गया| इस रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश में बच्चों की स्थिति हर क्षेत्र में बहुत ही चिंताजनक स्थिति में है फिर चाहे वह उनके जीवित और स्वस्थ रहने का मामला हो या शिक्षा का हो या या सुरक्षा का मामला हो | देश में इस समय देश की सबसे बड़ी पंचायत का चुनाव शुरू हो चुका है, सभी राजनैतिक दलो का चुनावी मुद्दा देश के विकास है | लेकिन देश की अगली पीढ़ी बच्चे और बच्चों के मुद्दे इन सब के बीच कंही भी एजेन्डे में नही है |
राष्ट्रीय और क्षेत्रीय पार्टिया जनता के लिए बिजली, पानी, सडक, रोजगार के लोक लुभावने वादों के साथ प्रचार प्रसार में जुटीं है और अपने पक्ष में वोट कराने के लिए हर सम्भव कोशिश कर रहीं हैं | परन्तु देश की आबादी का एक बड़ा हिस्सा लगभग 42% जो बच्चे हैं और 18 वर्ष से कम उम्र के हैं उनके जीवन जीने, स्वस्थ्य रहने, उनके विकास, सुरक्षा और भागीदारी जैसे मसलों विशेष केन्द्रित होकर स्पष्टता के साथ पहल किसी भी पार्टी के घोषणा पत्र में दिखाई नही देता है |
शिखर प्रशिक्षण संस्थान की सचिव सुश्री. संध्या ने कहा कि VOP एवं QIC-AC द्वारा जारी इस रिपोर्ट सहित सरकारी संस्थानों द्वारा किये गये अध्ययन और आकड़े हमारे सामने बच्चों की चिंताजनक स्थितियों को सामने लाते हैं | प्रदेश में बच्चों के पोषण और स्वास्थ्य स्तर का बेहद खराब स्थिति में है | वंही इनमें सुधार लाने वाले विभाग बच्चों के प्राथमिक स्वास्थ्य और पोषण विकास कार्यक्रम का कार्य अप्रभावी स्थिति में है | सरकारों की जिम्मेदारी है की वे इनमें गुणवत्ता सुधार के प्रभावी उपाय करें|
प्रेसवार्ता में शम्भूनाथ रिसर्च संस्थान की कार्यक्रम निदेशिका एवं (QIC-AC) के कोर टीम सदस्या सुश्री. रोली सिंह ने कहा कि उत्तर प्रदेश में बच्चों के खिलाफ अपराघ का ग्राफ लगातार बढ़ता जा रहा है| इस मुद्दे को गम्भीरता से लेते हुए प्रदेश में राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग का गठन किया जाना अति आवश्यक है | इस स्थिति से निपटने के लिए हमें बच्चों विकास और सुरक्षा के लिए जिम्मेदार तन्त्र को सुदृढ़ करते हुए विभिन्न प्रभावी कारकों को बाल अधिकारों के लिए सम्वेदनशील होकर कार्य करना होगा |
वायस ऑफ पीपुल की संयोजिका श्रुति नागवंशी ने कहा कि बाल अधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था चाइल्ड राइट्स एंड यू (CRY) अपने सहयोगी संस्थाओ के साथ मिलकर तैयार किया गया बाल अधिकार घोषणा पत्र तैयार कर सभी राजनैतिक पार्टियों के प्रमुखों से मिलकर दिया और उनसे उनके पार्टी घोषणा पत्र में बच्चो के हित में शामिल करने की अपील किया | साथ ही बाल अधिकार घोषणा पत्र के समर्थन में उत्तर प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रो में समुदाय के बीच सघन चर्चा चलाकर दो लाख से अधिक हस्ताक्षर कराए |
आज पांच साल से कम आयु के करीब 50 प्रतिशत भारतीय बच्चों की अनदेखी की जाती है, उन पर ध्यान नही दिया जाता हैं। लाखों बच्चे हर साल बीमारियों के कारण दम तोड़ते हें । देश के अस्सी लाख बच्चे स्कूल नही जा पाते । देश के नीति निर्धारकों के लिए बच्चों की यह बदहाल स्थिति चिन्ता की बात नही है क्योंकि बच्चे मतदाता नही है । बच्चों के मुददे, समस्याए किसी राजनैतिक पार्टी का एजेंडा नही होती है।
वायस ऑफ पीपुल और क्वालिटी इन्सटीट्यूशनल केयर एण्ड आल्टरनेटिव फॉर चिल्ड्रेन वंचित बच्चों के जीवन मे स्थायी बदलाव सुनिश्चित करने के लिए कार्य करता है इसी संदर्भ में बच्चों की आवाज सुनी जा सके और उनकी शिक्षा, सुरक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और भागीदारी के बच्चों के अधिकारों पर एक रिपोर्ट “उत्तर प्रदेश में बाल अधिकारों की स्थिति” पर कुछ महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर ध्यान देना आवश्यक है | 


शिक्षा
2012-13 में जंहा बुनियादी शिक्षा के लिए कुल बजट 25109 करोड की व्यवस्था की गई थी वहीं वर्ष 2013-14 के लिए 21,520 करोड की व्यवस्था की गई है जो कि पिछले वर्ष के मुकाबले 3589 करोड़ रुपया कम है।
नेशनल यूनिवर्सिटी आफॅ एजूकेशन, प्लानिंग एण्ड एडमिनिस्ट्रेश्न से जारी एजूकेशन डेवलेपमेंट इन्डेक्स 2012-13 के आंकडों पर नज़र डालने पर पता चलता है कि उत्तर प्रदेश वर्ष 2011-12 में इस सूची में 32 वें स्थान पर था वही वर्ष 2012-13 में फिसल कर 34 वें स्थान पर आ गया है। उत्तर प्रदेश एजूकेशन डेवलेपमेंट इन्डेक्स में नीचे से पाचॅ गम्भीर स्थिति वाले राज्यों की सूची में आ गया है।

कुपोषण
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे- 3 के अनुसार उत्तर प्रदेश में 42 प्रतिशत बच्चे कम वजन के हैं तथा प्रदेश का हर दूसरा बच्चा कुपोषित पाया गया है । कुपोषित बच्चों में मृत्यु की सम्भावना सामान्य बच्चों की तुलना में 9 गुना अधिक होती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार बच्चों में लम्बाई के अनुपात में कम वजन होना, किसी भी देश या प्रदेश में स्वास्थ्य पोषण सेवाओं की गुणवत्ता का आंकलन करने का एक महत्वपूर्ण मापदण्ड है । प्रदेश में बाल विकास सेवा एवं पुष्टाहार विभाग के अंतर्गत समन्वित बाल विकास योजना के माध्यम से आंगनवाडी केन्द्र संचालित किए जा रहे हैं और बच्चों, किशोरी, बालिकाओं, गर्भवती/धात्री महिलाओं के लिए अनुपूरक पोषाहार का वितरण कराकर कुपोषण की समस्या को दूर किए जाने का प्रयास किया जा रहा है। चयनित जनपदों में पोषण पुनर्वास केन्द्र स्थापित कर गंभीर कुपोषित बच्चों का उपचार किया जाता है। फिर भी प्रदेश के बच्चों में कुपोषण की समस्या अभी बनी हुई है।
वायस ऑफ पीपुल (VOP) संगठन द्वारा किये गये सर्वे में 112 कुपोषित बच्चों वाले परिवारों में 79 प्रतिशत बच्चे 0-1 वर्ष की उम्र के हैं तथा शेष 21 प्रतिशत 1-5 वर्ष की उम्र के हैं । 37 प्रतिशत बच्चे को मिलने वाला पोषण मानक के अनुरुप नही है जिससे उनके पोषण के स्तर में कमी दिखाई दे रही है । सर्वेक्षित 112 कुपोषित बच्चों में से 21 प्रतिशत बच्चों में वजन गिरने की स्थिति दिखाई दे रही थी, 13 प्रतिशत बच्चों मे बार-बार बुखार आने की समस्या, 12 प्रतिशत बच्चों को उचित पोषण न मिलने के कारण वे जल्दी थक जाने की समस्या से पीडि़त रहें । इन स्थितियों में 75 प्रतिशत बच्चे गंभीर कुपोषण की समस्या से ग्रस्त हैं तथा 25 प्रतिशत बच्चे मध्यम दर्जे के कुपोषित हैं। 


उत्तर प्रदेश में बाल सुरक्षा की स्थिति
उत्तर प्रदेश की 2011 की जनगणना के अनुसार 0-6 वर्ष की आयु के बच्चों की संख्या 2001 में जहां 1000 पर 916 थी वही 2011 की जनगणना के अनुसार यह घट कर 1000 पर 899 हो गई है । विगत 10 वर्षो में देखें तो 17 अंकों की गिरावट आई है सेन्सेक्स 2011 के अनुसार उत्तर प्रदेश में 908 प्रति हजार लिंगानुपात है और 0-6 वर्ष के बच्चों में 899 प्रति हजार लिंगानुपात है।
उत्तर प्रदेश में बच्चों के विरूद्ध अपराधों में 16.6: की बढ़ोत्तरी हुई है। राष्ट्रीय अपराध अभिलेख ब्यूरों 2012 के अनुसार उत्तर प्रदेश में सर्वाधिक 43% बच्चों के अपहरण के मामले दर्ज किये गये है।
राष्ट्रीय अपराध अभिलेख ब्यूरों 2012 के अनुसार उ0प्र0 देश में बच्चों के विरूद्ध दुष्कर्म के मामले में पहले स्थान पर है। इसके बावजूद देश में बाल सुरक्षा को लेकर कोई ठोस कदम नही उठाए जा रहे है ।
प्रदेश में गायब होने वाले बच्चों के आंकड़ों को लेकर सरकार के विभागों में काफी असमानता दिखाई दे रही है। जिसके कारण ट्रैकिंग सिस्टम पर भी गम्भीर सवाल खडे़ हो रहे है। एक तरफ सरकार द्वारा विधान सभा में दिये गये आंकड़ों की जानकारी में वर्ष 2011 से अप्रैल 2013 तक 7320 बच्चे गायब बताए वही प्रदेश की अपराध अनुसंधान ब्योरों के अनुसार 7712 बच्चे गायब है ।
वर्ष 2013 में लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत उत्तर प्रदेश में 3565 लोगों पर विभिन्न धाराओं के अंतर्गत केस पंजीकृत किए गए हैं
उत्तर प्रदेश में वर्ष 2012-13 में बच्चों के अपहरण के 4265 मामले दर्ज किए गए हैं जिसमें से 4052 लडकियां है तथा 213 लडके हैं |
उत्तर प्रदेश में किशोर न्याय अधिनियम के अन्र्तगत विधि के विरूद्ध कार्य करने वाले बच्चों की स्थिति अति दयनीय है। उत्तर प्रदेश में 75 जिले है जिसमें लड़को के लिए 19 और लड़कियों के लिए 5 सिर्फ 24 सुधार गृहो का ही निर्माण किया गया है।
QIC-AC द्वारा प्रदेश के विभिन्न जिला जेलों में अपनी माताओं के साथ रह रहे 0 से 6 वर्ष के बच्चों की संख्या सूचना के अधिकार से प्राप्त गई जिसमें सिद्ध दोष महिला बंदियों के साथ 41 लड़के और 41 लड़िकया रह रहे हैं वही विचाराधीन महिला बंदियों के साथ 204 लडके और 154 लडकिया रह रहे हैं । इस प्रकार वर्तमान में 440 लड़के और लड़किया अपने माताओं के साथ विभिन्न जेलों में बिना किसी जुर्म के सजा भुगत रहे है


हमारी मांगे-

  1. उत्तर प्रदेश में राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग का गठन शीघ्र से शीघ्र किया जाए । यह हमारी राजनैतिक दलों/उम्मीवारों से पहली और महत्वपूर्ण मांग है। इससे राज्य में शिकायतों का निवारण और नीतियों और अधिनियमों का अनुपालन सुनिश्चित हो सकेगा।
  2. बच्चों के लिए राज्य बजट में बच्चों से संम्बंधित नीतियों के उचित कार्यान्वयन के लिए वृधि की जानी चाहिए। शिक्षा के अधिकार कानून को लागू हुए 4 वर्ष पूरा होने के बाद भी उ0प्र0 अभी काफी पीछे है। रिपोर्ट के अनुसार अभी भी आधारभूत कमिया है जेसे शौचालय, स्वच्छ पीने का पानी, खेल का मैदान, स्वच्छता, आदि मानकों के अनुरुप नही है।
  3. अर्ली चाइल्ड केयर एंड एजुकेशन (ECCE) नीतियों का प्रदेश में सही प्रकार से क्रियान्वयन कराना सुनिश्चित करना।
  4. समेकित बाल विकास योजना मिशन का सही प्रकार से क्रियान्वयन ताकि कुपोषण के खतरे से लडा जा सके।
  5. भोजन का अधिकार कानून की राज्य स्तरीय नीतिया बनाई जाए और उनका क्रियान्वयन किया जाए ताकि प्रदेश में बच्चों के पोषण की स्थिति में सुधार आ सके।
  6. समेकित बाल सुरक्षा योजना के अंतर्गत प्रदेश में सभी स्तरों अथार्त् राज्य स्तर, जिला स्तर, ब्लाक स्तर और ग्राम स्तर पर गठित बाल संरक्षण समितियों का पुर्नगठन एवं उनका सक्रियकरण किया जाए।
  7. गुमशुदा बच्चों के लिए एक मजबूत ट्रेकिंग सिस्टम बनाया जाए, जो पंचायत स्तर से राज्य स्तर तक हो। ग्रामीण क्षेत्रों से बच्चो के गुमशुदा होने पर जिम्मेदारी पंचायतों की होगी।
  8. यौन शोषण और हिंसा से पीडि़त बालक और बालिकाओं के केसों की सुनवाई फास्ट ट्रैक अदालतों द्वारा तेजी से की जाए।
वायस ऑफ़ पीपुल (VOP) एवं क्वालिटी इन्शटीट्यूशनल केयर एंड अल्टरनेटिव फॉर चिल्ड्रेन (QIC-Ac) द्वारा चाइल्ड राइट्स एंड यू (CRY) , नई दिल्ली के सहयोग से

Photo by: Rohit Kumar as initiative of PVCHR: life and struggle of Neo Dalit Movement through camera of born Dalit against caste system
http://www.bistandsaktuelt.no/nyheter-og-reportasjer/arkiv-nyheter-og-reportasjer/it-opptur-for-indias-kastel%C3%B8se

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