लखनऊ. संयुक्त राष्ट्र में किये वादे के 30 वर्षो बाद भी भारत सरकार द्वारा अब तक इसे लागु न करना शर्मनाक है। यह बिल पिछले कई वर्षो से राज्य सभा में लंबित है और राजनितिक इक्षाशक्ति के आभाव में पास नहीं हो पा रहा है। विश्व यातना विरोधी दिवस के अवसर पर यु पी प्रेस क्लब में आयोजित सेमीनार में यह चिंता जाहिर की गयी। सेमिनार का आयोजन मानवाधिकार जन निगरानी समिति और यू पी वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन के संयुक्त तत्वावधान में किया गया।
सेमिनार को संबोधित करते हुए प्रदेश सरकार में राज्य मंत्री का दर्जा प्राप्त डा. सी पी राय ने कहा कि आजादी के इतने वर्षो के बाद भी पुलिस का चरित्र नहीं बदला है, हमें यातना की हर घटना को सुनते समय ग्लानी होती है। डा राय ने कहा कि जब किसी का उत्पीड़न होता है तब हम अपनी आँखे बंद कर लेते हैं अब मीडिया की एक बड़ी भूमिका है।
पी0वी0सी0एच0आर0 के संयोजक डा. लेनिन ने कहा कि यह विडम्बना है कि हम आज भी १८६१ में बनाये गए पुलिस एक्ट से संचालित हो रहे हैं जब समाज बनता हुआ था। आज स्थितियां बदल गयी है मगर दलितों और वंचितों पर होने वाले अत्याचार की प्रवृत्ति नहीं बदली। आज जरुरत है कि हम सभी को यातना रोकने के लिए आपसी तालमेल बनाना होगा।
समाजविज्ञानी डा0 योगेश बंधू ने सभी राजनितिक दलों के चुनावी घोषणापत्रों का विश्लेषण करते हुए कहा कि कम्युनिस्ट पार्टियों को छोड़ कर अधिकांश दलों का घोषणा पत्र एक जैसा ही है। इनमे सभी आदर्शवादी बाते हैं मगर अधिकारों कि बाते सिर्फ चन्द शब्दों में निपटा दिया गया।
सेमिनार में अपनी यातना के पीडतों ने भी अपनी बात रखी। बनारस की मुन्नी देवी ने बताया कि उनके पति की हत्या कर दी गयी और आजतक उसके परिवार को धमकियाँ मिल रही है।
सोनभद्र की कूपन देवी ने अपनी व्यथा बताते हुए कहा कि उसे डायन बता कर उसका उत्पीड़न किया गया है।
वरिष्ठ पत्रकार उत्कर्ष सिन्हा ने कहा कि यातना की घटनाओं में राज्य और तंत्र के साथ साथ समाज की भी बड़ी भूमिका है। जातिय द्वेष और सांप्रदायिक सोच ने शोषण और यातनाओं की कई घटनाओं को जन्म दिया है। उन्होंने कहा कि पुलिस एक्ट के संशोधन के बिना व्यवस्था नहीं बदल सकती।
आई ऍफ़ जे डब्लू के राष्ट्रीय सचिव हेमंत तिवारी ने कहा कि हलाकि आज हम आधुनिक युग में जी रहे हैं मगर यह घटनाये हमें बताती है कि हमारी व्यवस्था अभी भी आदिम युग में जी रहे हैं। पुलिस के थर्ड डिग्री शब्द का चलन जब तक नहीं बंद होता तब तक यातना के विरुद्ध संघर्ष अपने मुकाम तक नहीं पहुचेगा। सरकारों को चाहिए कि वे यातना और उत्पीड़न करने वालों के लिए सख्त सजा का प्रावधान करे और उसे लागू भी सख्ती से करे।
बहुजन समाज पार्टी के दद्दू प्रसाद ने कहा कि यह देखना होगा कि यातना की प्रवृत्ति को समर्थन कहाँ से मिल रहा है। हम बीते ६४ वर्षो में समाज को नहीं बदल सके तो चिंतन करना होगा कि कमी कहाँ रही। उन्होंने मनुस्मृति का जिक्र करते हुए कहा कि शोषण आधारित समाज को ऐसे ही किताबो से ताकत मिलती है। हमें समाज में संघर्ष के लिए नवयुवको को खड़ा करना होगा।
लखनऊ वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन के अध्यक्ष सिद्धार्थ कलहंस ने कहा आज मीडिया में भी समाचारों को ले कर सामान भाव नहीं रह गया है। बदायूं की घटना को तो दिखाया जाता है मगर हरियाणा के भागना की घटना को कोई तवज्जो नहीं दी गयी। इस बात को भी ध्यान देना होगा।पी0वी0सी0एच0आर0 की श्रुति नागवंशी ने कहा कि इस तरह के दिवसों का आयोजन करने से मुद्दे को सामने लाने में मदद मिलती है। जहाँ हम संगठित होते हैं वहां पुलिस का बर्ताव भी पीड़ित के साथ अलग ही होता है। जब भी किसी कमजोर तबके का केस आता है तब स्वाभाविक रूप से उसे दोषी मान लिया जाता है।
सम्मलेन की अध्यक्षता कर रहे हसीब सिद्दिक्की ने कहा हमें न्यायपालिका की कार्यपद्धति पर भी गौर करना होगा। उन्होंने ध्यानं दिलाते हुए कहा कि बड़े शहरों के घटनाओं को तो तवज्जो तो मिल जाति है मगर छोटे शहरों की घटनाये कही खो जाती हैं।
सेमीनार का संचालन इरशाद अहमद नें किया।
सेमीनार में बड़ी संख्या में यातना पीड़ित, प्रदेश भर से आये पत्रकार और बुद्धिजीवियों ने रागिब अली, अनूप कुमार श्रीवास्तव, अजय सिंह, राजीव सिंह, जय कुमार मिश्र, आशीष अवस्थी और राम कुमार नें शिरकत की। धन्यवाद ज्ञापन शीरीन शबाना खान ने किया और
Photo by: Rohit Kumar as initiative of PVCHR: life and struggle of Neo Dalit Movement through camera of born Dalit against caste system
http://www.bistandsaktuelt.no/nyheter-og-reportasjer/arkiv-nyheter-og-reportasjer/it-opptur-for-indias-kastel%C3%B8se
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